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"नदी" (रुबाइ)





 "ज़माने को कभी हरगिज़,
  समझ में आ नहीं सकता!
  जो  डर  जाए  गुज़रने से,
  वो मंजिल पा नहीं सकता!
  ख़ुशी  और ग़म किनारे हैं,
  नदी  है  ज़िन्दगी   अपनी;
  गरजता  ख़ूब  है   सागर ,
  मगर  वो गा  नहीं सकता!!"
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